अद्भुत रेयर बॉम्बे ब्लड ग्रुप वाले ठठारी गांव के सतीश सिंह ठाकुर ने किया 200किलोमीटर रायपुर जा कर रक्तदान
बालको हॉस्पिटल में भर्ती एक मरीज के लिए ठठारी गांव के रक्तविर सतीश सिंह ठाकुर ने एक ही काल पर रायपुर आ कर रक्तदान किया। मरीज के परिजनों ने सपर्क किया था , तब उन्होंने उनके लिये ब्लड उपलब्ध करने की बात कही थी।
इससे पहले भी उनके टीम के द्वारा 10 अलग अलग मरिजो के लिये रेयर बॉम्बे ब्लड ग्रुप डोनेशन कराया जा चुका है कुछ वर्ष पहले अपने गाँव ठठारी से रांची ( झारखंड) बाइरोड जाकर रक्तदान कर चुके हैं इसी कड़ी में यह इस वर्ष का 8वा बॉम्बे ब्लड़ ग्रुप डोनेशन है।
लाखो लोगों में से किसी एक में पाया जाता है और उसका नाम बॉम्बे ब्लड ग्रुप है. इस रक्त समूह को रेयर ऑफ द रेयरेस्ट रक्त समूह भी कहते है.
निःस्वार्थ सेवा संस्थान छत्तीसगढ़ के हजारों रक्तविरो श्री सतीश सिंह ठाकुर जी को अपना प्रेणास्रोत मानते हैं संस्थान के हर रक्तदान शिविर में नए रक्तविरो को श्री सतीस जी रक्तदान करने के लिए मोटिवेश करते हैं
यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर ब्लड टाइप विश्व में सिर्फ 0.0004 फीसदीलोगों में ही पाया जाता है. भारत में 10,000 लोगों में केवल एक व्यक्ति का ब्लड बॉम्बे ब्लड टाइप होगा. इसे Hh ब्लड टाइप भी कहते है या फिर रेयर ABO ग्रुप ब्लड. डॉक्टर वाई एम भेंडे ने 1952 में इसकी सबसे पहले खोज की थी. इसको बॉम्बे ब्लड इसलिए कहा जाता है क्योंकि सबसे पहले यह बॉम्बे के कुछ लोगों में पाया गया था. इस ब्लड टाइप के भीतर पाई जाने वाली फेनोटाइप रिएक्शन के बाद यह पता चला की इसमें एक H एंटीजेन होता है. इससे पहले इसे कभी नहीं देखा गया था. अधिक समझने के लिए इनकी लाल कोशिकाओं (RBC) में एबीएच एंटीजन होते हैं और उनकी सीरा में एंटी-ए, एंटी-बी और एंटी-एच होते है. एंटी-एच को ABO समूह में नहीं खोजा गया है, लेकिन प्रीट्रांसफ्यूज़न टेस्ट में इसके बारे में पता चला है. यही H एंटीजन ABO ब्लड समूह में बिल्डिंग ब्लॉक का काम करते है. एच एंटीजन की कमी “बॉम्बे फेनोटाइप” के रूप में जानी जाती है.

